रविवार, 30 नवंबर 2008

सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्र

सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
किसी भी श्रद्धा-विश्वास-युक्त स्त्री के द्वारा स्नानादि से शुद्ध होकर सूर्योदय से पहले नीचे लिखे मन्त्र की १० माला प्रतिदिन जप किये जाने से घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है तथा उसका सौभाग्य बना रहता है। किसी शुभ दिन जप का आरम्भ करना चाहिये तथा प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन के नवरात्रों में विधिपूर्वक हवन करवा कर यथाशक्ति कुमारी, वटुक आदि को भोजनादि से संतुष्ट करना चाहिये। इस मन्त्र के हवन में समिधा केवल वट-वृक्ष की लेनी चाहिये।
मन्त्रः- " ॐॐ ह्रीं ॐ क्रीं ह्रीं ॐ स्वाहा।"
साथ ही नीचे लिखे "सौभाग्याष्टित्तरशतनामस्तोत्र" का प्रतिदिन कम-से-कम एक पाठ करना चाहिये। इससे सौभाग्य की रक्षा होती है।
सौभाग्याष्टित्तरशतनामस्तोत्र
निशम्यैतज्जामदग्न्यो माहात्म्यं सर्वतोऽधिकम्।
स्तोत्रस्य भूयः पप्रच्छ दत्तात्रेयं गुरुत्तमम्।।१
भगवंस्त्वन्मुखाम्भोजनिर्गमद्वाक्सुधारसम्।
पिबतः श्रोत्रमुखतो वर्धतेऽनुरक्षणं तृषा।।२
अष्टोत्तरशतं नाम्नां श्रीदेव्या यत्प्रसादतः।
कामः सम्प्राप्तवाँल्लोके सौभाग्यं सर्वमोहनम्।।३
सौभाग्यविद्यावर्णानामुद्धारो यत्र संस्थितः।
तत्समाचक्ष्व भगवन् कृपया मयि सेवके।।४
निशम्यैवं भार्गवोक्तिं दत्तात्रेयो दयानिधिः।
प्रोवाच भार्गवं रामं मधुराक्षरपूर्वकम्।।५
श्रृणु भार्गव यत्पृष्टं नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
श्रीविद्यावर्णरत्नानां निधानमिव संस्थितम्।।६
श्रीदेव्या बहुधा सन्ति नामानि श्रृणु भार्गव।
सहस्त्रशतसंख्यानि पुराणेष्वागमेषु च।।७
तेषु सारतरं ह्येतत् सौभाग्याष्टोत्तरात्मकम्।
यदुवाच शिवः पूर्वं भवान्यै बहुधार्थितः।।८
सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य भार्गव।
ऋषिरुक्तः शिवश्छन्दोऽनुष्टुप् श्रीललिताम्बिका।।९
देवता विन्यसेत् कूटत्रयेणावर्त्य सर्वतः।
ध्यात्वा सम्पूज्य मनसा स्तोत्रमेतदुदीरयेत्।।१०
।।अथ नाममन्त्राः।।
ॐ कामेश्वरी कामशक्तिः कामसौभाग्यदायिनी।
कामरुपा कामकला कामिनी कमलासना।।११
कमला कल्पनाहीना कमनीय कलावती।
कमलाभारतीसेव्या कल्पिताशेषसंसृतिः।।१२
अनुत्तरानघानन्ताद्भुतरुपानलोद्भवा।
अतिलोकचरित्रातिसुन्दर्यतिशुभप्रदा।।१३
अघहन्त्र्यतिविस्तारार्चनतुष्टामितप्रभा।
एकरुपैकवीरैकनाथैकान्तार्चनप्रिया।।१४
एकैकभावतुष्टैकरसैकान्तजनप्रिया।
एधमानप्रभावैधद्भक्तपातकनाशिनी।।१५
एलामोदमुखैनोऽद्रिशक्रायुधसमस्थितिः।
ईहाशून्येप्सितेशादिसेव्येशानवरांगना।।१६
ईश्वराज्ञापिकेकारभाव्येप्सितफलप्रदा।
ईशानेतिहरेक्षेषदरुणाक्षीश्वरेश्वरी।।१७
ललिता ललनारुपा लयहीना लसत्तनुः।
लयसर्वा लयक्षोणिर्लयकर्त्री लयात्मिका।।१८
लघिमा लघुमध्याढ्या ललमाना लघुद्रुता।
हयारुढा हतामित्रा हरकान्ता हरिस्तुता।।१९
हयग्रीवेष्टदा हालाप्रिया हर्षसमुद्धता।
हर्षणा हल्लकाभांगी हस्त्यन्तैश्वर्यदायिनी।।२०
हलहस्तार्चितपदा हविर्दानप्रसादिनी।
रामा रामार्चिता राज्ञी रम्या रवमयी रतिः।।२१
रक्षिणी रमणी राका रमणीमण्डलप्रिया।
रक्षिताखिललोकेशा रक्षोगणनिषूदिनी।।२२
अम्बान्तकारिण्यम्भोजप्रियान्तभयंकरी।
अम्बुरुपाम्बुजकराम्बुजजातवरप्रदा।।२३
अन्तःपूजाप्रियान्तःस्थरुपिण्यन्तर्वचोमयी।
अन्तकारातिवामांकस्थितान्तस्सुखरुपिणी।।२४
सर्वज्ञा सर्वगा सारा समा समसुखा सती।
संततिः संतता सोमा सर्वा सांख्या सनातनी ॐ।।२५
।।फलश्रुति।।
एतत् ते कथितं राम नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
अतिगोप्यमिदं नाम्नां सर्वतः सारमुद्धृतम्।।२६
एतस्य सदृशं स्तोत्रं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्।
अप्रकाश्यमभक्तानां पुरतो देवताद्विषाम्।।२७
एतत् सदाशिवो नित्यं पठन्त्यन्ये हरादयः।
एतत्प्भावात् कंदर्पस्त्रैलोक्यं जयति क्षणात्।।२८
सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं मनोहरम्।
यस्त्रिसंध्यं पठेन्नित्यं न तस्य भुवि दुर्लभम्।।२९
श्रीविद्योपासनवतामेतदावश्यकं मतम्।
सकृदेतत् प्रपठतां नान्यत् कर्म विलुप्यते।।३०
अपठित्वा स्तोत्रमिदं नित्यं नैमित्तिकं कृतम्।
व्यर्थीभवति नग्नेन कृतं कर्म यथा तथा।।३१
सहस्त्रनामपाठादावशक्तस्त्वेतदीरयेत्।
सहस्त्रनामपाठस्य फलं शतगुणं भवेत्।।३२
सहस्त्रधा पठित्वा तु वीक्षणान्नाशयेद्रिपून्।
करवीररक्तपुष्पैर्हुत्वा लोकान् वशं नयेत्।।३३
स्तम्भेत् पीतकुसुमैर्णीलैरुच्चाटयेद् रिपून्।
मरिचैर्विद्वेषणाय लवंगैर्व्याधिनाशने।।३४
सुवासिनीर्ब्राह्मणान् वा भोजयेद् यस्तु नामभिः।
यश्च पुष्पैः फलैर्वापि पूजयेत् प्रतिनामभिः।३५
चक्रराजेऽथवान्यत्र स वसेच्छ्रीपुरे चिरम्।
यः सदाऽऽवर्तयन्नास्ते नामाष्टशतमुत्तमम्।।३६
तस्य श्रीललिता राज्ञी प्रसन्ना वाञ्छितप्रदा।
एतत्ते कथितं राम श्रृणु त्वं प्रकृतं ब्रुवे।।३७
।।श्रीत्रिपुरारहस्ये श्रीसौभाग्याष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रं।।

विपत्तिनाश, सम्पदा-प्राप्ति, साधन-सिद्धि

विपत्तिनाश, सम्पदा-प्राप्ति, साधन-सिद्धि

(१) श्रीहनुमानजी का अनुष्ठान

"ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाभीमपराक्रमाय सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाबलप्रचण्डाय सकलब्रह्माण्डनायकाय सकलभूत-प्रेत-पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षिणी-पूतना-महामारी-सकलविघ्ननिवारणाय स्वाहा।
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् (गायत्री)
ॐ नमो हनुमते महाबलप्रचण्डाय महाभीम पराक्रमाय गजक्रान्तदिङ्मण्डलयशोवितानधवलीकृतमहाचलपराक्रमाय पञ्चवदनाय नृसिंहाय वज्रदेहाय ज्वलदग्नितनूरुहाय रुद्रावताराय महाभीमाय, मम मनोरथपरकायसिद्धिं देहि देहि स्वाहा।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाभीमपराक्रमाय सकलसिद्धिदाय वाञ्छितपूरकाय सर्वविघ्ननिवारणाय मनो वाञ्छितफलप्रदाय सर्वजीववशीकराय दारिद्रयविध्वंसनाय परममंगलाय सर्वदुःखनिवारणाय अञ्जनीपुत्राय सकलसम्पत्तिकराय जयप्रदाय ॐ ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रूं फट् स्वाहा।"
विधिः-
सर्वकामना सिद्धि का संकल्प करके उपर्युक्त पूरे मन्त्र का १३ दिनों में ब्राह्मणों द्वारा ३२००० जप पूर्ण कराये। तेरहवें दिन १३ पान के पत्तों पर १३ सुपारी रखकर शुद्ध रोली अथवा पीसी हुई हल्दी रखकर स्वयं १०८ बार उक्त मन्त्र का जाप करके एक पान को उठाकर अलग रख दे। तदन्तर पञ्चोपचार से पूजन करके गाय का घृत, सफेद दूर्वा तथा सफेद कमल का भाग मिलाकर उसके साथ उस पान का अग्नि में हवन कर दे। इसी प्रकार १३ पानों का हवन करे।
तदन्तर ब्राह्मणों द्वारा उक्त मन्त्र से ३२००० आहुतियाँ दिलाकर हवन करायें। तथा ब्राह्मणों को भोजन कराये।

(२) "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते हनुमते मम कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यं साधय साधय मां रक्ष रक्ष सर्वदुष्टेभ्यो हुं फट् स्वाहा।"
विधिः-मंगलवार से प्रारम्भ करके इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता रहे और कम-से-कम सात मंगलवार तक तो अवश्य करे। इससे इसके फलस्वरुप घर का पारस्परिक विग्रह मिटता है, दुष्टों का निवारण होता है और बड़ा कठिन कार्य भी आसानी से सफल हो जाता है।

(३) "हनुमन् सर्वधर्मज्ञ सर्वकार्यविधायक।
अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।"
या
"हनूमन्नञ्जनीसूनो वायुपुत्र महाबल।
अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।"
विधिः- प्रतिदिन तीन हजार के हिसाब से ११ दिनों में ३३ हजार जप जो, फिर ३३०० दशांश हवन या जप करके ३३ ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाये। इससे अकस्मात् आयी हुई विपत्ति सहज ही टल जाती है।

(४) "राजीवनयन धरे धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।"
विधिः- ब्राह्म मुहूर्त्त में उठकर स्नान करके प्रतिदिन उपर्युक्त अर्धाली सहित मन्त्र की सात माला जप करना चाहिए और प्रत्येक माला की समाप्ति पर धूप-गुग्गुल की अग्नि में आहुति देनी चाहिये। सातों माला पूरी होने पर उस भस्म को यत्न से उठाकर रख लेना चाहिये और प्रतिदिन कार्य में लगते समय उसे ललाट पर लगा लेना चाहिये। यह जप तथा भस्म-धारण प्रतिदिन करते रहने से विपत्तियों का नाश और कार्य में सफलता की प्राप्ति होती है।

(५) "पुनि मन करम रघुनायक। चरन कमल बंदौ सब लायक।।
राजीवनयन धरे धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।
ॐ नमो भगवते सर्वेश्वराय श्रियः पतये नमः।।"
विधिः- उपर्युक्त चौपाईसहित इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार कम-से-कम जप करे। इससे विपत्तिनाश, सुखलाभ और स्त्रियों के द्वारा जपे जाने पर उनका सौभाग्य अचल होता है।

(६) "हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।"
विधिः- इस मन्त्र का कम-से-कम १०८ बार स्वयं जप करे। कुछ दिन जपने के बाद स्वप्न में आदेश सम्भव है। अनुष्ठान के लिये ५१००० जप और दशांश ५१०० जप या आहुतियां आवश्यक है।

(७) "हा कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।
हा कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
कौरवैः परिभूतां मां किं न त्रायसि केशवः।।"
विधिः- उपर्युक्त दोनों मन्त्रों का ३२ हजार जप करने से बड़े-बड़े संकट दूर हो जाते हैं।

(८) "ॐ कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।"
विधिः- प्रतिदिन विधिवत् भगवान् श्रीकृष्ण का या भगवान् विष्णु का पूजन करके उपर्युक्त मन्त्र का १२ दिनों में २५००० जप करने से स्वप्न के द्वारा कार्यसिद्धि का ज्ञान होता है।

(९) "ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णायाकुण्ठमेधसे।
सर्वव्याधिविनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।"
विधिः- इस मन्त्र का प्रतिदिन प्रातःकाल जगते ही बिना किसी से कुछ बोले तीन बार जप करने से सब अनिष्ट का नाश होता है। इसका अनुष्ठान ५१००० मन्त्र जप तथा ५१०० दशांश हवन से सम्पन्न हो जाता है।

(१०) "ॐ रां श्रीं ऐं नमो भगवते वासुदेवाय ममानिष्टं नाशय नाशय मां सर्वसुखभाजनं सम्पादय सम्पादय हूं हूं श्रीं ऐं फट् स्वाहा।।"
विधिः- इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करना चाहिये।

(११) नमः सर्वनिवासाय सर्वशक्तियुताय ते।
ममाभीष्टं कुरुष्वाशु शरणागतवत्सल।।"
विधिः- इस मन्त्र का २१००० बार जप करना या कराना चाहिये तथा दशांश २१०० जप या हवन करना चाहिये।